bharat

मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि कम से कम देश के नाम पर 
तो इस पोस्ट को शेयर करे ताकि हमें देश में यह लगे कि हम भारतीय 
और हमें भारत से प्यार है। - Sampat Sharma Mob. 08058924535

इस कविता शीर्षक क्या रखू जी----.

इस कविता शीर्षक क्या रखू जी----.
.....................
चुपचाप क्या जीना यारों!
खुलकर जीवन बीताना है।
दुःख किसके घर नहीं आता?
सुख का भी नहीं ठिकाना है।
‘सम्पत’ सही कहा किसी ने,
चार दिन की जिदंगी चार दिन में जाना है।
गम की बौछारों के बीच,
सतत् हमें मुस्काराना है।
टांग खीचना आदत है इसकी,
ऐसा ही ये जमाना है।
आओ चलते है साथ-साथ,
मिलकर हमें इतिहास जो बनाना है।
हार गई बुरी किस्मत मेहनत के आगे,
प्रतिकूलता ने भी लोहा माना है।
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा चल पड़ो फिर से
रुको नहीं लक्ष्य बना लो पाना है जो पाना है।
मैं भी नहीं हूँ कोई बड़ा आदमी,
कलम से पेट नहीं भरेगा
मुझे भी भविष्य बनाना है।
लिखने का मकसद केवल
दिल के भाव आप तक पहूँचाना है।
आगे आपकी मर्जी.... इस रचना को लाईक करना है
या कमेन्ट लगाना.....या कमेन्ट लगाना है। ....
Mob. 08058924535


my new poem दुनियां क्यों देती है ताने?

my new poem दुनियां क्यों देती है ताने?
...............
जब चूमती है सफलता कदम हमारे, तब बहुत अच्छा लगता है।
तब हो जाते है सब तरह से वारे न्यारे, बहुत अच्छा लगता है।।
कहानियाँ बन जाती बिगड़ी हुई नोंक झोंक की बातें, बहुत अच्छा लगता है।
जैसे कि रात की सब्जी सुबह खाते, टूटी बाल्टी से नहाते है।
अपनों के लिए जब हम ख्वाब सजाते, तब बहुत अच्छा लगता है।
दर्द नहीं है हमको कि दुनियां क्यों देती है ताने?
दुनियां तो हमें सिखाती है कि हम खुद की शक्ति को पहचाने।
सत्य यही है खुद को पहचानना ही जीत है हमारी।
खुद को प्रतिकूलता में निखारना ही जीत है हमारी।।
हाँ दर्द होता जब कोई हमसे पहले सफलता पाता है।
परन्तु यह भी सत्य है कि झोपड़ी जल्दी बन जाती है।
और महल बनाने में समय लग जाता है।
हम हार भी गये तो निराश नहीं होना।
जिन्दगी बहुत लम्बी है विश्वास नहीं खोना।
बनाना है अगर जीवन सफल तो बीज प्रेम के उगाना।
जो कुछ मिले जितना मिले माँ बाप की सेवा में लगाना।
‘सम्पत’ क्या इसके जैसे बहुत से मिलेंगे हे साथी....
याद रखना खुद का अनुभव भले ही मुझे भूल जाना ....
मुझे भूल जाना - आपका अपना सम्पत शर्मा
Mob. 08058924535


इसे कहे समस्या का समाधान !

इसे कहे समस्या का समाधान !
एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ


और दूसरी का एक किसान के साथ। एक बार पिता अपनी दोनों पुत्रियों से मिलने गया। 


पहली बेटी से हालचाल पूछा तो उसने कहा कि इस बार हमने बहुत परिश्रम किया है और 


बहुत सामान बनाया है। बस यदि वर्षा न आए तो हमारा कारोबार खूब चलेगा।


बेटी ने पिता से आग्रह किया कि वो भी प्रार्थना करे कि बारिश न हो।


फिर पिता दूसरी बेटी से मिला जिसका पति किसान था। उससे हालचाल पूछा तो उसने कहा 


कि इस बार बहुत परिश्रम किया है और बहुत फसल उगाई है परन्तु वर्षा नहीं हुई है। 


यदि अच्छी बरसात हो जाए तो खूब फसल होगी। उसने पिता से आग्रह किया कि वो प्रार्थना


करे कि खूब बारिश हो। एक बेटी का आग्रह था कि पिता वर्षा न होने की प्रार्थना करे और 


दूसरी का इसके विपरीत कि बरसात न हो। पिता बडी उलझन में पड गया। एक के लिए प्रार्थना 


करे तो दूसरी का नुक्सान। समाधान क्या हो?


पिता ने बहुत सोचा और पुनः अपनी पुत्रियों से मिला। उसने बडी बेटी को समझाया कि यदि 


इस बार वर्षा नहीं हुई तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी छोटी बहन को देना। 


और छोटी बेटी को मिलकर समझाया कि यदि इस बार खूब वर्षा हुई


तो तुम अपने लाभ का आधा हिस्सा अपनी बडी बहन को देना। - सम्पत शर्मा

स्वर्ग बन जायेगा आपका परिवार।-------------

स्वर्ग बन जायेगा आपका परिवार।-------------
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कविता बनाकर आपसे एक बात कहू। 
अपने घर को स्वर्ग बना सकती है एक बहू।
सबसे पहले सास ससुर का स्वभाव जाने। 
क्यों मारते है वे आपस में एक दूसरे को ताने।
सास से पूछे अपने पति के बचपन की बातें।
ससुर जी से समझे कैसे बिताई उन्होने दुःख की रातें।
सास को मां कहकर पुकारे, समय पर करे काम सारे।
इस बात ध्यान रखे कि सास बहु में नोंक झोंक
वर्शो से ही चला आ रहा है और चलता है।
क्यों कि सास को नाराज होने का मौका
हमेषा बहू आने बाद ही मिलता है।
परन्तु यह भी सच कि
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सास बहू के गठजोड़ से ही घर अच्छा चलता है।
सास से कोई गलती हो जाये तो बहू नाक ना फुलाये।
बहू से कोई भूल हो जाये तो सास सांस ना फुलाये।
हर रोज बहू सास से अकेले में ये बात जरुर जताये।
कि मां जी मुझमें कोई कमी है तो आप मुझको ही बताये।
उस कमी को मैं कैसे निकाल सकती हूँ बहू सास से पूछे।
सास बहू को बेटी माने उसकी गलती पर बहू को न नोचंे।
पति की कमी कभी पति को ना बताये, सास से कहलवायें।
सप्ताह में एक दो बार घर में ऐसे खेल खेले जिसमें षामिल हो पूरा परिवार
हर रोज सभी मिलकर आरती करे, एक दूसरे में हिम्मत भरे अपार।
कहता है सम्पत ईष्वर की कृपा से स्वर्ग बन जायेगा आपका परिवार।
इस कविता पर सम्पत षर्मा को है आपकी कमेन्ट का इन्तजार....इन्तजार।
मो. 08058924535

हो सकता है यह रचना आपमें हिम्मत भर जाये।....



हो सकता है यह रचना आपमें हिम्मत भर जाये।....
कविता पढ़कर आपका दिल कहे तो कमेन्ट करना लाईकर करना आपकी मर्जी 
......
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।
दूसरों की सफलता के किस्से हम दम दबाव बनाते है।
दुःख सबका अपना-अपना, हम किसी को नहीं सुनाते है।।
कोई पूछता है हाल दिल का, तो थोड़े से मुस्करा जाते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।
क्या करे? कितना करे? कुछ समझ नहीं आता है।
सोचते-सोचते रात बीत जाती है दिन गुजर जाता है।।
दूसरों से ज्यादा है पास हमारे, फिर भी भीखमंगे नजर आते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।
आज कल दर्द की दवा वही, जो दर्द मिटाती नहीं छुपाती है।
सकारात्मकता के सागर में नकारात्मकता सामने आती है।।
दर्द तीरों से नहीं, दर्द होता है जब अपने ही व्यंग्य सुनाते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।
बस! दोश देकर एक दूसरे को, बेकाबू बन्दूक तानते है।
खुद को कोस-कोस बाल नोंचते है, कमी खुद की नहीं मानते है।
क्यों? हम बीते वक्त का रोना ही सबके सामने गाते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।
हम यह ना भूले कि दुःख भूलाने की दवा गम की शराब नहीं है,
कहता है ‘‘सम्पत’’ सचमुच आपकी कोई आदत खराब नहीं है।
अब तो भूल जाओ बीते वक्त को, छोडे हुए तीर लौट कर नहीं आते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है
अपनों से कहे, अपनें आप से कहे, हिम्मत भरे अपने आप में।
करे प्रयास ईमानदारी से, बहुत कुछ पाने का दम है आपमें।
हमें कोई परवाह नहीं कितने लाईक करते है कितने कमेन्ट आतेे है।
रहा नहीं जाता है दर्द किसी का देखकर, इसलिए दर्द को कलम से बताते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।
- आपका अपना सम्पत शर्मा
Mob. 08058924535

मृत्यु किसकी ?

My new poem.....

मृत्यु किसकी ?


मैं तो रोज मरता हूँ
मैं रोज जन्मता हूँ
मृत्यु किसकी ?
मेरे मन में कौनसा विचार कब आयेगा
मुझे नहीं मालूम 

फिर मैं जिंदा कैसा?
मेरे साथ क्या होना मुझे नहीं मालूम 
फिर मैं जिंदा कैसा?
मेरे विचार मेरे नहीं
अगर मर भी गया तो 
मृत्यु किसकी ?
अच्छे काम करुंगा तो याद कर 
लोगों की जुबां पर दो मिनिट रहूगा
बुरा किया तो भी 2 मिनिट रहूगा
मृत्यु किसकी ?

हर रोज अपने मन का नहीं होता है तो रोज मरता हू
सहारा लेकर एक नई आशा का फिर हिम्मत भरता हू 
फिर कोशिश करता हू जीने की 
लेकिन आ जाती है फिर कोई ना कोई बात ऐसी तो लगता है
अब घड़ी आ गयी है मरने की 
मृत्यु किसकी ?
मर जाउंगा तो कौन आपको बतायेगा
व्यस्त है सब अपने काम में कौन आयेगा?
मृत्यु किसकी ?

जो कहना है जो करना जिंदा हो तो कर लो 
जिसने जीते जी जीवन को नहीं समझा
‘सम्पत’ मृत्यु है उसकी
मृत्यु है उसकी
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Sampat sharma mob. 08058924535



धीरज रख दिन बदल जायेंगे।


सम्पत आज सावन है, कल पतझड़ के मौसम आयेंगे।
गुजर ने दे साथी वक्त, धीरज रख दिन बदल जायेंगे।।

जिनके घर में निकले है सूरज, शाम होते ही ढ़ल जायेंगे।
जो कठोर है रहने दे उनको पानी में ,एक दिन वो गल जायेंगे।।

अपनी समझ को ना बिगाड़ चाहे दुश्मन हो अपार।
तेरे नेक इरादें दुश्मनी को दोस्ती में बदल जायेंगे।।

माना कि आज नहीं है तेरे पास खाने को।
मेहनत कर और विश्वास रख ईश्वर पर 

तू नई दिशा दे जायेगा इस जमाने को।
बस! कर्म की बगिया खिलाता जा।
एक दिन जरुर इसमें फल आयेंगे।

धीरज रख दिन बदल जायेंगे।। - सम्पत शर्मा
Mob. 08058924535


बात सच्ची लगे ...

बात सच्ची लगे ...
और आपके अनुभव से मिले तो ही लाईक करना या कमेन्ट करना जी

खास ऐसा! कर लेता तो ऐसा हो जाता। जब भी हमें जीवन में 
ऐसा महसूस होता है तो हम लोग या तो बीते हुए पल से षिक्षा 
लेकर आगे बढ़ जाते है या तो बीते हुए को याद याद कर करके 
और गम में चले जाते है। इसलिए आओ मेहनत करे आज का 
सद्पयोग करे क्यों कि समय जा रहा है भविष्य के गर्भ में क्या 
छिपा है कोई नहीं जानता है। फिर ऐसा अवसर ना आये कि हमें 
अपनी जुबां से कहना पड़े कि खास ऐसा! कर लेता तो ऐसा हो
जाता। - सम्पत शर्मा
Mob. 08058924535



कांटे बहुत आयेंगे। .....


कांटे बहुत आयेंगे। .....
....
जब हम नेक रास्तें पर चलेंगे 
तो कुछ लोग बिना आग जलेंगे।।
सामने होंगे तो देगे बधाईयाँ।
पीठ पीछे करेंगे सारी बुराईयाँ।।
धर्म के काम पर भी ‘‘सम्पत’’
हमारे उपर नजर रखी जायेगी।
हमारी हर एक बात लिखी जायेगी।।
हमारी सफलता को मेहनत से नहीं
मात्र संयोग समझा जायेगा।
जो साथी हार गया हमसें
वो हमारी कमी गिनायेगा।।
जो क ख ग नहीं जानते है वे चुनौती दे जायेंगे।
‘‘सम्पत’’ तू चल तो रहा है नेक रस्ते पर
परन्तु याद रखना धार्मिकता के मार्ग पर 
फूल कम कांटे बहुत आयेंगे।
कांटे बहुत आयेंगे। - सम्पत शर्मा
Mob. 08058924535



मैंने जो कुछ सीखा है


मैंने जो कुछ सीखा है मित्रों से सीखा है।
जो कुछ जाना है अपनों से जाना है।।
जो कुछ कमाया है दुनिया से कमाया है।
जो कुछ पहचाना है अनुभव से पहचाना है।।
जो कुछ अच्छाई है मुझमें वो सद्गुरु के कारण है।
जो कुछ कमी है वो मेरे आलस्य के कारण है।
आपकी और मेरी मित्रता बनी रहे 
हम एक दूसरे के काम आये।
इसी भावना के साथ आपका अपना मित्र
-सम्पत शर्मा मो. 08058924535



विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।

हो सकता है यह रचना आपमें हिम्मत भर जाये।....
कविता पढ़कर आपका दिल कहे तो कमेन्ट करना लाईकर करना आपकी मर्जी
......
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।
दूसरों की सफलता के किस्से हम दम दबाव बनाते है।
दुःख सबका अपना-अपना, हम किसी को नहीं सुनाते है।।
कोई पूछता है हाल दिल का, तो थोड़े से मुस्करा जाते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।

क्या करे? कितना करे? कुछ समझ नहीं आता है।
सोचते-सोचते रात बीत जाती है दिन गुजर जाता है।।
दूसरों से ज्यादा है पास हमारे, फिर भी भीखमंगे नजर आते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।

आज कल दर्द की दवा वही, जो दर्द मिटाती नहीं छुपाती है।
सकारात्मकता के सागर में नकारात्मकता सामने आती है।।
दर्द तीरों से नहीं, दर्द होता है जब अपने ही व्यंग्य सुनाते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।

बस! दोश देकर एक दूसरे को, बेकाबू बन्दूक तानते है।
खुद को कोस-कोस बाल नोंचते है, कमी खुद की नहीं मानते है।
क्यों? हम बीते वक्त का रोना ही सबके सामने गाते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।

हम यह ना भूले कि दुःख भूलाने की दवा गम की शराब नहीं है,
कहता है ‘‘सम्पत’’ सचमुच आपकी कोई आदत खराब नहीं है।
अब तो भूल जाओ बीते वक्त को, छोडे हुए तीर लौट कर नहीं आते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।

अपनों से कहे, अपनें आप से कहे, हिम्मत भरे अपने आप में।
करे प्रयास ईमानदारी से, बहुत कुछ पाने का दम है आपमें।
हमें कोई परवाह नहीं कितने लाईक करते है कितने कमेन्ट आतेे है।
रहा नहीं जाता है दर्द किसी का देखकर, इसलिए दर्द को कलम से बताते है।
विचार हर मन को उठाते है, गिराते है, सताते है।
 - आपका अपना सम्पत शर्मा
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कालीमिर्च

१- यदि आपका ब्लड प्रेशर लो रहता है, तो प्रतिदिन तीन दाने कालीमिर्च के साथ 21 दाने किशमिश का सेवन करे।
२- जुकाम होने पर कालीमिर्च के चार-पांच दाने पीसकर एक कप दूध में पकाकर सुबह-शाम लेने से लाभ मिलता है।
३- एक चम्मच शहद में 2-3 बारीक कुटी हुई कालीमिर्च और एक चुटकी हल्दी पाउडर मिलाकर लेने से कफ में राहत मिलती है।
४- इससे शरीर की थकावट दूर होती है। कालीमिर्च से गले की खराश दूर होती है।
५- इससे रक्त संचार सुधरता है।यह दिमाग के लिए फायदेमंद होती है। गैस के कारण पेट फूलने पर कालीमिर्च असरदार होती है। इससे गैस दूर होती है।
६-कालीमिर्च की चाय पीने से सर्दी-ज़ुकाम, खाँसी और वायरल इंफेक्शन में राहत मिलती है। कालीमिर्च पाचनक्रिया में सहायक होती है।
७- कालीमिर्च सभी प्रकार के संक्रमण में लाभ देती है।

क्या हो सकती है मेरी कल्पना ?

समय हो तो आप like करना comment करना आपकी मर्जी
....poem -----
क्या हो सकती है मेरी कल्पना ?
देखकर इस पानी को ,
ये बहता दरिया ,
या ठहरा पानी,
ये ठण्डी हवाये,
ये नदी की जवानी,
क्या हो सकती है मेरी कल्पना?
ये खुला आसमान ,
ये हरे हरे पेड़,
ये उभरी हुई जमीन ,
क्या हो सकती है मेरी कल्पना?
क्यों कहू कि पानी गंन्दा है ?
पानी से पवित्र कोई नहीं,
पानी से अच्छा कोई नहीं,
पानी बिना कोई नहीं,
क्या हो सकती है मेरी कल्पना?
क्यों खड़ा हूँ मै, नहीं जानता?
क्यों देख रहा हूँ मैं नहीं जानता?
क्या हो सकती है मेरी कल्पना?
क्या कुछ यादें है जो मुझे यहां तक लायी है?
क्या कोई बचपन की इच्छा अधूरी है जो
आज पानी देखकर याद आयी है ?
क्या हो सकती है मेरी कल्पना?
----
मुझे तो बस! जो अच्छा लगा चला गया
सोचता रहा क्यों खड़ा हू मैं ?
सुन रहा था पानी की कल-कल आवाज
सोच रहा थ क्या -क्या छुपा है इसमें राज?
जिन्दगी में फिर कब मौका मिलेगा ?
अपने गाँव की नदी के किनारे पर जाने का
और वहां पर बिताये पलो को आपको सुनाने का
आपका अपना सम्पत शर्मा eks- 08058924535

शुद्ध शहद की पहचान.......

शुद्ध शहद की पहचान.......
शुद्ध शहद में खुशबू रहती है। वह सर्दी में जम जाता है तथा गरमी में पिघल जाता है।
शुद्ध शहद को कुत्ता नहीं खाता।
कागज पर शहद डालने से नीचे निशान नहीं आता है।
शहद की कुछ बूंदे पानी में डालें। यदि यह बूंदे पानी में बनी रहती है तो शहद असली है और शहद की बूंदे पानी में मिल जाती है तो शहद में मिलावट है। रूई की बत्ती बनाकर शहद में भिगोकर जलाएं यदि बत्ती जलती रहे तो शहद शुद्ध है।
एक ज़िंदा मक्खी पकड़कर शहद में डालें। उसके ऊपर शहद डालकर मक्खी को दबा दें। शहद असली होने पर मक्खी शहद में से अपने आप ही निकल आयेगी और उड़ जायेगी। मक्खी के पंखों पर शहद नहीं चिपकता।
कपड़े पर शहद डालें और फिर पौंछे असली शहद कपडे़ पर नहीं लगता है।

आओ सोच बदले

आओ सोच बदले
दोस्त मुझे मुसीबत में काम आये ऐसी सोच क्यों रखे। मैं मेरे
दोस्त के हर मुसीबत में काम आउं ऐसी सोच रखे तो दोस्ती में
फायदा है बाकी तो जब तक चल जाये चलाते रहो।
                                                                      - सम्पत शर्मा

आप किसके साथ हो?

आप किसके साथ हो?
किताब से समझाी हुई बात इम्तिहान तक काम आती है
और पिता की समझाई हुई बात शमशान तक काम आती 
आप किसके साथ है ?
(A)   किताब के   (B) पिता के 

हे मेरे! प्यारे मित्र

हे मेरे! प्यारे मित्र
दोस्ती  की सबसे खूबसूरत बात
यह है कि  दोस्त की बात को सही
तरीके से समझें और अपनी बात
को सही तरह से समझाएं।
दोस्ती के बारे में अपना कमेन्ट जरुर बतायें। Sampat Sharma Mob. 08058924535

संयुक्त परिवार पर संयुक्त विचार

संयुक्त परिवार पर संयुक्त विचार
कलयुग है, हर परिवार में भाँति-भाँति के लोग है।फिर भी
जो संयुक्त परिवार में रहते है, मेरी नजर में सब देवता है।
और एकल परिवार वाले अगर अलग-अलग भी रहते है
तो रहे , लेकिन सोच संयुक्त रखें । इससे भी हमें
संयुक्त रहने जैसा अहसास होगा।
अतः स्वर्ग है वो दर, जो घर संयुक्त है।
संयुक्त परिवार में हर सदस्य जिम्मेदार भी है
और हर सदस्य मुक्त है।
                                                             - सम्पत शर्मा mobile no 08058924535
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समय सबका आता है।

समय सबका आता है।
समय सबका जाता है।
समय से सबका नाता है।
आओ समय का सद्पयोग करे
क्यों कि समय को व्यर्थ जो बीताता है।
‘सम्पत’ बाद में वो पछताता है।
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तो आंसू निकल आते है और चुप सी हो जाती हूँ।

तो आंसू निकल आते है और चुप सी हो जाती हूँ।.............

पिता से पूछा मैंने ...बेटी के बारे मुझे कुछ बताओ जी।
कैसी होती है बेटी? आप पिता की नजर से कुछ सुनाओं जी।।

पिता बोले .... मैं इतना जानता हूँ कि ...
बेटी को डाटता हूँ तो बेटी भी रोती है और मैं भी रोता हूँ।
बेटी हँसती है तो वो चैन से सोती है और मैं भी चैन से सोता हूँ।
फिर गया मैं.... माँ के पास....माँ बोली...
बेटा सम्पत! बेटी परिवार की पतवार है..
अनुभव करके देख, बेटी बिना नहीं संसार है।
जिस घर में बेटी नहीं वो घर...घर नहीं..
उन लोगों से दूर ही रहना ‘सम्पत’
जिनके पास बेटी पालने का जिगर नहीं।

माँ ने कहा, मैं भले ही माँ कहलाती हूँ...
पर बेटी में अपना ही प्रतिबिम्ब पाती हँू।
जब-जब भी कोई पूछता मुझसे बेटी के बारे में.. 
तो आंसू निकल आते है और चुप सी हो जाती हूँ।
सुनकर माँ-बाप की बात.......मैं भी चुपचाप चला आया हूँ।
स्वीकार करना मेरे मित्रों ! मेरी इस टूटी-फूटी रचना को
मैं इससे ज्यादा बेटी पर कलम नहीं चला पाया हूँ। - सम्पत षर्मा mob- 08058924535
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पिता खुद के लिए जिता है।

पिता खुद के लिए जिता है।
पिता खुशी देता है सबको गम खुद पीता है।
पिता पढ़ाता वो पाठ जो किताबे नहीं पढ़ाती है।
पिता के जाने के बाद पिता की खूब याद आती है।
पिता के चेहरे की लकीरे अनुभव के नियाान है
पिता का नाम हमारी पहचान है
पिता का काम हमारी पहचान है।
पिता की वाणी कठोर है
पर कोमलता दिल के चहु और हे।
पिता सोचता है रात दिन सबके बारे में
तिललियों सी लग रही है बेटिया पिता की क्यारी में
पिता न जाने कितनों से नोक झोक करता हुआ
हमको खिलाता है।
पिता अपने पसीने की कमाई से
हमारे कांटो के जीवन में फुल बिछाता है।
पिता आंखो से नहीं अन्तर मन से रोता है।

हनुमानचालीसा


samjane jaisi baat hai


suvichar



जमाना हमें अबला क्यों बुलाता है।


जमाना हमें अबला क्यों बुलाता है।
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मेरे पैदा होने पर परि कहते थे लोग, 
मेरी नटखट अदा पर हँसते थे लोग।
मुझे बेटा कहकर बुलाते थे लोग,
मेरे गाल खींच कर लाड लड़ाते थे लोग।
मुझे स्कूल छोड़ते और लाते थे लोग
, मुझ पर हक जताते थे सब लोग।
मेरे लिए सब सहारा बन जाते थे लोग ,
मुझसे दया कर लाड़ लड़ाते थे लोग।

पर धीरे-धीरे सब कुछ बदल गया
जैसे ही मैं बड़ी हुई कुछ लोग मुझे निहारने लगे।
मेरी पीठ पीछे गलत मतलब के नाम से पुकारने लगे।
मेरा अकेले बाहर जाना खतरो से खाली न था।
कौन ले मेरी जिम्मेदारी मेरा कोई माली न था।
मां बोलती थी मुझसे आजकल जमाना ठीक नहीं है।
तू घर में ही रहा कर अकेले आना-जाना ठीक नहीं है।
पर
एक दिन की बात है एक लफंगे ने मेरा रस्ता रोक लिया।
मैंने आव देखा न ताव खुद को लड़ाई में झोंक लिया।
खींच कर मारी लात उसकी जांघो के बीच और वो बोखला गया।
आठ दस चांटे मारे गाल पर खून नाक से आ गया।
मैंने कहा गुस्से से रुक साले नपुंसक अभी पत्थर लाती हूँ।
खुद की रक्षा कैसे की जाती भेडियों से कमीने अभी दिखाती हूँ।
वो ऐसा भागा-ऐसा भागा आज तक नजर नहीं आता है।
प्रभाव मेरी हिम्मत का, मेरी षादी के बाद भी
मेरी गली में हर लड़का नजर झुका कर जाता है।
बस! गम है तो इस बात का
कि जमाना हमें अबला क्यों बुलाता है। जमाना हमें अबला क्यों बुलाता है।
इसलिए सही कहता है सम्पत कवि!
बहनों कभी मत हारों ऐसे लफंगो से जो तुम्हारा रस्ता रुकाता है।
सबक सिखाओं उनको जिनको नारी जात की कद्र करना नहीं आता है। - सम्पत षर्मा
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http://www.sampatpoem.blogspot.in/

दर्द उठता है मगर, दर्द चुभता हैं।


दर्द उठता है मगर, दर्द चुभता हैं। 
दर्द शान्त होता है मगर दर्द चुभता हैं।
दर्द मे खुषी है फिर भी दर्द मे दर्द सारे, 
न बनना कांटा कभी, सम्पत तुम्हे पुकारे
चाहत है कि कुछ औंर लिख दूं। 

मगर, लिखने मे भी कोई दर्द है प्यारे।
दर्द दिया नही जाता। दर्द बिन जिया नही जाता ।
ये दर्द समझ मे आता है पर समझाया नही जाता ।
न समझा दर्द को, को दर्द लेकर क्या किया।
दर्द को न जाना दर्द तो ,तुने दर्द संग दंगा किया।
दर्द को छिपाकर दिल मे, मुस्कराना सीख ले।

दर्द बहुत कुछ सिखता है, दर्द औंरो का मिटाना सीख ले।
दर्द की परिभाषा नही, न ही दर्द का शब्दकोष हैं।
दर्द तो जम जाता है दिल पे जैसे बूंद ओंस हैं।
ना दर्द से दगा कर, ना दर्द दे किसी को

सम्पत जग वाले माने या ना माने ,
फिर भी दर्द होता है सभी को।
दर्द को आवाज दे, दर्द को तू साज दे। 
न दे दर्द किसी को बनाले इरादा आज से।
बनाले इरादा आज से। - सम्पत शर्मा
                                                                 - sampat sharma